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क्या है मंत्र-योग साधना ?

Pavitrambharat / क्या है मंत्र-योग साधना ?

मंत्र-योग साधना, शक्ति एवं तेज रूप शब्द है, जिसमें आध्यात्मिक जागरण के रहस्य भरे हुए हैं। इन मन्त्रों के स्वरों में एक विशेष कम्पन होता है जो आत्म-चेतना की भूमि को स्पर्श कर उसे जाग्रत कर देता है।

मन्त्रों के बार-बार दुहराने की क्रिया को जप कहते हैं।

मंत्र साधना कई प्रकार की होती है। मं‍त्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है। मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना। मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। ‘मंत्र साधना’ भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है। मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र, 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र। > मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।> वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है।

मंत्र नियम :

मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है।

अनेक मन्त्र भारतीय अध्यात्म के अन्तर्गत है, जिनका जप साधकों के लिए आत्म ज्ञान की उपलब्धि के निमित्त आवश्यक बतलाया गया है।

मन्त्र योग के द्वारा शरीर के अन्दर ‘नाद’ भी प्रकट होते हैं, जिन्हें साधक अनहद नाद के नाम से जानते हैं।

इस साधन से ब्रह्माण्डी शब्दों के साथ तादात्म्य स्थापित कर साधक सृष्टि के रहस्यों को जानने में सक्षम हो जाता है।

मुख्य रूप से निम्नलिखित तरीके से मंत्र योग साधन किये जाते हैं 

  1. नित्य :- प्रातः काल एवं सायं काल में किसी गुरू द्वारा उपदिष्ट मन्त्र का जप नित्य प्रति करना।
  2. नैमित्त :- किसी विशेष आध्यात्मिक मुहूर्त एवं पूजा के अवसर पर इस जप को किया जाता है।
  3. काम्य :- मन में किसी विशेष इच्छा की पूर्ति के लिए मन्त्र विशेष का जप करना।
  4. निषिद्ध :- किसी अनधिकारी गुरु से सीखा मन्त्र या मिश्रित मन्त्र अथवा गलत ढंग से उच्चरित मन्त्र निषिद्ध कहलाते हैं।
  5. प्रायश्चित जप :- किसी किये हुए कार्य के प्रायश्चित के निमित्त जप किये जाते हैं उन्हें प्रायश्चित जप कहते हैं।
  6. अचल :- स्थिरता पूर्वक बैठक कर जो जप किया जाता है उसे अचल जप कहते हैं।

इसमें साधक दृढ़ता पूर्वक अपने आसन पर रहते हुए जप करता है।

  1. चल :- कभी-कभी चलते-चलते या खड़े होकर अथवा किसी कार्य को करते समय भी जो जप चलते रहते हैं, उसे ‘‘चल जप’’ कहते हैं।
  2. वाचिका :- जिस जप को बार-बार उच्च ध्वनि में किया जाता है उसे वाचिका-जप कहते हैं।
  3. उपांशु :- होठों में बुदबुदा कर जिस मन्त्र का जप किया जाता है उसे उपांशु कहते हैं।
  4. मनस्त :- इस जप में वाणी से नहीं बोला जाता, बल्कि सिर्फ मन में वैचारिक धरातल पर जप चलता रहता है।

साधक आँखे बन्द कर इस जप को मन की भूमि पर करता रहता है, जिससे अन्य सभी विचार दब जाते हैं और सिर्फ मन्त्र के भाव ही मन पर छाये रहते हैं।

  1. अखण्ड जप :- अखण्ड जप की साधना कई घण्टों तक अबाध गति से चलती रहती है।

इसके लिए समय निश्चित कर लिए जाते हैं और उतने समय में बिना किसी अवरोध के जप चलता रहता है।

  1. अजपा :- मन्त्र के अर्थ को मन में धारण करते हुए उसमें लय हो जाना अजपा जप कहलाता है।
  2. प्रदक्षिणा :- किसी पवित्र स्थान विशेष के चारों ओर घूमते हुए जो जप किया जाता है, इसे प्रदक्षिणा जप कहते हैं।

उपर्युक्त सभी प्रकार के मन्त्रों के जप से मन को एकाग्र करके ध्येय में केन्द्रित करने का प्रयास किया जाता है।

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